कृषि विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ गाजर घास जागरूकता सप्ताह ।
मनुष्य एवं पशुओं के लिए घातक है गाजर घास।
सर्वेश श्रीवास्तव
तरुण प्रवाह
अयोध्या।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज , अयोध्या के कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह के निर्देश के क्रम में कृषि महाविद्यालय के शस्य विज्ञान विभाग द्वारा 16वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह शस्य विज्ञान प्रक्षेत्र पर आयोजित किया गया । शस्य विज्ञान प्रक्षेत्र के साथ-साथ विश्वविद्यालय परिसर मे भी वैज्ञानिकों, शिक्षको, छात्रो, मजदूरों एवं कर्मचारियों द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की एक घटक के रूप में गाजर घास मुक्त परिसर करने का प्रयास किया गया ।उक्त कार्यक्रम के अंतर्गत गाजर घास के बारे में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विस्तृत चर्चा भी की गई तथा नियंत्रण के विभिन्न उपायों जैसे फूल आने के पहले पौधों को जड़ से उखाड़ना एवं कंपोस्ट, हरी खाद ,वर्मी कंपोस्ट बनाना तथा रासायनिक एवं जैविक विधि द्वारा इस खरपतवार को नियंत्रित करने का उपाय बताया गया ।
द्वारा बताया गया कि गाजर घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग (डरमेटाइटिस, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार एवं दमा) आदि जैसी बीमारियां हो जाती हैं , यहां तक कि अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु भी हो सकता है। पशुओं के लिए भी यह घास अत्यधिक विषाक्त होता है । गाजर घास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियां खत्म होने लगती है, जैव विविधता के लिए गाजर घास एक बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है । इसके कारण फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है । यह भी बताया गया है कि गाजर घास का पौधा तीन- चार महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा 1 वर्ष में उसकी चार पीढियां पूरी हो जाती है ।
विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ अखिलेश कुमार सिंह ने बताया कि गाजर घास के नियंत्रण हेतु रासायनिक विधियों पर प्रकाश डालते हुए वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि गाजर घास के साथ अन्य वनस्पतियों को नष्ट करने के लिए ग्लायफोसेट (1.0 से 1.5 % )और घास कुल की वनस्पतियों को बचाते हुए केवल गाजर घास को नष्ट करने के लिए 2,4-डी (1.5 लीटर )या मेट्रिब्यूज़ीन (0.32- 0.5 %) नाम के शाकनाशी का का प्रयोग किया जाना चाहिए । यह भी सुझाव दिया गया कि वर्षा ऋतु में गाजर घास पर जैविक नियंत्रण के लिए मैक्सिकन बीटल (जाइग्रोग्रामा बाइकोलोराटा) नामक कीट को छोड़ना चाहिए ,तथा घर के आसपास एवं संरक्षित क्षेत्रों में गेंदा के पौध को लगाकर गाजर घास के फैलाव व वृद्धि को रोका जा सकता है ।
उक्त कार्यक्रम में मुख्य रूप से विभागाध्यक्ष डॉ ए के सिंह ,छात्र, कृषक, मजदूर के अलावा डॉ एच सी सिंह, इं आर सी तिवारी, डॉ रवि शंकर सिंह, डॉ राम प्रताप सिंह ,डॉ बी एन सिंह, अशोक कुमार सिंह ,देवी प्रसाद एवं रमाशंकर गुप्ता आदि उपस्थित थे ।कार्यक्रम के अंत में संचालक डॉ राम प्रताप सिंह द्वारा आए हुए समस्त वैज्ञानिक, शिक्षक, कर्मचारी ,कृषक, मजदूर एवं छात्रों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
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