कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी सलाह: गर्मियों में कैसे करें पशुओं का प्रबंधन?
अयोध्या ।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज , अयोध्या के कुलपति डॉ० बिजेंद्र सिंह के कुशल नेतृत्व एवं दिए गए निर्देश के क्रम में किसानों हेतु "गर्मियों में पशुओं के प्रबंधन" हेतु, विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर, पशु रोग वैज्ञानिक, डा० देश दीपक सिंह द्वारा सलाहकारी जारी की गई।
डॉ० सिंह के अनुसार, गर्मियों में पशुओं के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मियां तेज और लंबे समय तक होती हैं। यहां गर्मियों में वायुमंडलीय तापमान 45 डिग्री से भी अधिक हो जाता है । ऐसा मौसम दुधारू पशुओं पर अपना अत्यधिक दुष्प्रभाव डालता है । जिससे उनकी उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट आ जाती है । पशुओं में ग्रीष्म ऋतु में होने वाले दुष्प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय करना पशुओं के उत्पादकता एवं प्रजनन क्षमता बनाए रखने में मदद करता है:-
*पशुओं के लिए उपयुक्त आवास की व्यवस्था*
पशुओं के लिए साफ-सुथरी व हवादार पशुशाला होनी चाहिए। जिसका फर्ज पक्का तथा फिसलन रहित हो तथा मूत्र व पानी की निकासी हेतु ढलान हो। पशु गृह की छत ऊष्मा आवरोधी हो, ताकि गर्मियों में अत्यधिक गर्म ना हो । इसके लिए एस्बेस्टस की सीट उपयोग में लाई जा सकती है । अधिक गर्मी के दिनों में छत पर 4 से 6 इंच मोटी घास-फूस की परत या छप्पर डाल देना चाहिए । यह परत उष्मा अवरोधक का कार्य करती है। जिसके कारण पशुशाला के अंदर का तापमान कम बना रहता है। सूर्य की रोशनी को परावर्तन करने हेतु, पशु गृह की छत पर सफेद रंग करना चाहिए । पशुगृह की ऊंचाई कम से कम 10 फीट होनी चाहिए । ताकि हवा का समुचित संचार हो सके तथा छत की तपन से भी पशु बच सके। पशु गृह की खिड़कियों, दरवाजों तथा अन्य जगहों पर, जहां से तेज गर्म हो जाती हो, बोरी या टॉट टांग कर, पानी का छिड़काव करना चाहिए।
पशु के आवास गृह में अधिक भीड़भाड़ नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक पशु को उसकी आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराना चाहिए । एक वयस्क गाय या भैंस को 40 से 50 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता होती है। मुक्त घर व्यवस्था में गाय और भैंस को कम से कम 3.50 से 4 वर्ग मीटर स्थान ढका हुआ तथा 7 व 8 वर्ग मीटर खुले बाड़े के रूप में प्रति पशु उपलब्ध होना चाहिए । शीघ्र ब्याने वाले पशुओं के लिए ढका हुआ क्षेत्रफल 12 वर्ग मीटर तथा उतनी जगह क्षेत्र के रूप में उपलब्ध होनी चाहिए।
*पशुओं के शरीर का तापमान नियंत्रण* पशुओं के शरीर के तापमान को सामान्य बनाए रखने के लिए दिन में तीन-चार बार जब वायुमंडलीय तापमान अधिक हो, ठंडे पानी का छिड़काव करें । यदि संभव हो तो भैंसों को तालाब में ले जाएं। प्रयोगों से साबित हुआ है कि दोपहर में पशुओं पर ठंडे पानी का छिड़काव उनके उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।
*गर्मी में पशु चारा* गर्मी में पशु चरना कम कर देते हैं । अतः पशुओं को चारा प्रातः या सायंकाल में ही उपलब्ध कराना चाहिए तथा जहां तक संभव हो पशुओं के आहार में हरे चारे की मात्रा अधिक रखें। यदि पशुओं को चाराने ले जाते हैं तो प्रातः एवं सायंकाल वही चराना चाहिए । जब वायुमंडलीय तापमान कम हो।
*पशुओं को पीने के लिए पानी की व्यवस्था* पशुओं को पीने के लिए ठंडा पानी उपलब्ध कराना चाहिए। इसके लिए पानी के टैंक पर छाया की व्यवस्था हो तथा पानी की पाइपों को खुली धूप से न गुजरने दें तथा जहां तक हो सके पानी की पाइप जमीन के अंदर बीच होनी चाहिए ताकि पानी को दिन मैं गर्म होने से बचाया जा सके।
*पशु गृह के आसपास छाया* पशुशाला के आसपास छायादार वृक्षों का होना परम आवश्यक है । यह वृक्ष पशुओं पशुओं को छाया तो प्रदान करते ही है, साथ ही साथ उन्हें लू से भी बचाते है।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर पशुपालक किसान भाई गर्मियों में अपने पशुओं के उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता को बनाए रख सकते हैं । जिससे पशु से अच्छी उत्पादकता तथा आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
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